awaaz
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क्यों लगाये पंचायत हम पर ही पहरे,
क्यों छीने हक़ हम से देखने के सपने सुनहरे
क्यों इज्ज़त के नाम पर हम पर ही कानून सारे,
क्यों छीने हक़ हम से भरने के अपने जीवन में रंग प्यारे.
क्यों आन के नाम पर हम पर ही पत्थर मारे,
क्यों छीने हक़ हम से खुल कर जीने के पल हमारे.
क्यों शान के नाम पर हम पर ही दीवारे,
क्यों छीने हक़ हम से इस पंचायत ने बराबरी के सारे.
क्यों नहीं देता हमे उड़ने को पंख हमारे,
है हम भी है सक्षम तोड़ने में आसमां के तारे.
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